महाभारत में एक कथा मिलती है। एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी, पुत्र और पुत्रवधू के साथ रहता था। कथा कहने से जो थोड़ा बहुत मिलता था, उसी में सब मिल जुल कर खाते थे। एक बार वहां अकाल पड़ गया। कई दिन तक परिवार में किसी को अन्न नहीं मिला। कुछ दिनों बाद उसके घर में कुछ आटा आया। ब्राह्मणी ने उसकी रोटी बनाई और खाने के लिए उसे चार भागों में बांटा। किंतु जैसे ही वे भोजन करने बैठे, दरवाजे पर एक अतिथि आ गया। ब्राह्मण ने अपने हिस्से की रोटी अतिथि के सामने रख दी, मगर उसे खाने के बाद भी अतिथि की भूख नहीं मिटी। तब ब्राह्मणी ने अपने हिस्से की रोटी उसे दे दी। इससे भी उसका पेट नहीं भरा तो बेटे और पुत्रवधू ने भी अपने-अपने हिस्से की रोटी दे दी। अतिथि सारी रोटी खाकर आशीष देता हुआ चला गया। उस रात भी वे चारों भूखे रह गए। उस अन्न के कुछ कण जमीन पर गिरे पड़े थे। नेवला उन कणों पर लोटने लगा तो जहां तक नेवले के शरीर से उन कणों का स्पर्श हुआ, उसका शरीर सुनहरा हो गया। यह अहसास होते ही कि ऐसा त्याग की महिमा के कारण हुआ है, नेवला सारी दुनिया में घूमता फिरा ताकि ऐसा ही त्याग खोज सके जिससे उसका बाकी शरीर भी सोने का हो जाए। उसने युधिष्ठिर के एक भव्य यज्ञ के बारे में सुना, जहां हजारों लोगों को भोजन दिया जा रहा था। यज्ञ के अंत में सोने के आधे शरीर वाला वह नेवला यज्ञ-भूमि में आया और हवन कुंड की राख में लोटने लगा। लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। नेवले ने नतीजा निकाला कि हृदय से किए गए उस गरीब आदमी के त्याग में राजाओं के भव्य यज्ञों से अधिक शक्ति थी।
Friday 12 July 2019
Tuesday 9 July 2019
✨✨ ह्रदय स्पर्शी घटना ✨✨
✨✨ ह्रदय स्पर्शी घटना ✨✨
बनारस में एक चर्चित दूकान पर लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब दोस्त-यार आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई और हंसी-मजाक में लगे ही थे कि एक लगभग 70-75 साल की बुजुर्ग स्त्री पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गई।
उनकी कमर झुकी हुई थी, चेहरे की झुर्रियों में भूख तैर रही थी। नेत्र भीतर को धंसे हुए किन्तु सजल थे। उनको देखकर मन मे न जाने क्या आया कि मैने जेब मे सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया,
"दादी लस्सी पियोगी ?"
मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं और मेरे मित्र अधिक। क्योंकि अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 5 या 10 रुपए ही देता लेकिन लस्सी तो 25 रुपए की एक है। इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उस बूढ़ी दादी के द्वारा मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी।
दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6-7 रुपए थे वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए। मुझे कुछ समझ नही आया तो मैने उनसे पूछा,
"ये किस लिए?"
"इनको मिलाकर मेरी लस्सी के पैसे चुका देना बाबूजी !"
भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था... रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी।
एकाएक मेरी आंखें छलछला आईं और भरभराए हुए गले से मैने दुकान वाले से एक लस्सी बढ़ाने को कहा... उन्होने अपने पैसे वापस मुट्ठी मे बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गई।
अब मुझे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहां पर मौजूद दुकानदार, अपने दोस्तों और कई अन्य ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए नहीं कह सका।
डर था कि कहीं कोई टोक ना दे.....कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर में बिठाए जाने पर आपत्ति न हो जाये... लेकिन वो कुर्सी जिसपर मैं बैठा था मुझे काट रही थी.....
लस्सी कुल्लड़ों मे भरकर हम सब मित्रों और बूढ़ी दादी के हाथों मे आते ही मैं अपना कुल्लड़ पकड़कर दादी के पास ही जमीन पर बैठ गया क्योंकि ऐसा करने के लिए तो मैं स्वतंत्र था...इससे किसी को आपत्ति नही हो सकती थी... हां! मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल को घूरा... लेकिन वो कुछ कहते उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बैठा दिया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा,
"ऊपर बैठ जाइए साहब! मेरे यहां ग्राहक तो बहुत आते हैं किन्तु इंसान कभी-कभार ही आता है।"
अब सबके हाथों मे लस्सी के कुल्लड़ और होठों पर सहज मुस्कुराहट थी, बस एक वो दादी ही थीं जिनकी आंखों मे तृप्ति के आंसू, होंठों पर मलाई के कुछ अंश और दिल में सैकड़ों दुआएं थीं।
न जानें क्यों जब कभी हमें 10-20 रुपए किसी भूखे गरीब को देने या उसपर खर्च करने होते हैं तो वो हमें बहुत ज्यादा लगते हैं लेकिन सोचिए कि क्या वो चंद रुपए किसी के मन को तृप्त करने से अधिक कीमती हैं?
क्या कभी भी उन रुपयों को बीयर , सिगरेट ,पर खर्च कर ऐसी दुआएं खरीदी जा सकती हैं?
जब कभी अवसर मिले ऐसे दयापूर्ण और करुणामय काम करते रहें भले ही कोई अभी आपका साथ दे या ना दे, समर्थन करे ना करें। सच मानिए इससे आपको जो आत्मिक सुख मिलेगा वह अमूल्य है।
❤️श्री बालाजी सेवा समिति नोएडा (एक सफर आध्यात्मिक विकास की अोर) ❤️
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