Sunday 29 September 2019

माँ ब्रहमचारिणी का स्वरूप व पूजा विधि:-

🌿🌿🍑 *द्वितीय नवरात्रि*🍑🌿🌿
                 🌾🎋 *आअो मैया* 🎋🌾
            🎊🎊 ☀ *माँ  ब्रहमचारिणी*☀🎊🎊

👉 *नवरात्र का दूसरा मां ब्रहमचारिणी की पूजा की जाती है। साधक एवं योगी इस दिन अपने मन को भगवती मां ब्रह्मचारिणी के श्री चरणों में एकाग्रचित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं।*
👉🏻 *देवी माँ का स्वरूप -* *फलदायिनी देवी ब्रह्मचारिणी मां का स्वरूप अत्यंत भव्य, तेजयुक्त और ज्योतिर्मय हैं। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल विराजमान हैं। इनकी उपासना करने का मंत्र कुछ इस प्रकार हैं :-*

*या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।*

*इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती हैं, इसलिए जो साधक सच्चे मन से मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करते है, मां उनके कष्टों को हरने के लिए जरूर आती है। मां सबकी झोली भरकर अपार भण्डार भरती है, इसलिए मां ब्रह्मचारिणी की उपासना पूरी विधि-विधान के अनुसार ही करनी चाहिए।*
*पूजा विधि :-*
*सर्वप्रथम आपको अपने देवी-देवताओं, गणों व योगिनियों को कलश में आमंत्रित करना होता हैं। इसके बाद कलश की फूल, रोली, चंदन और अक्षत से पूजा की जाती हैं। उन्हें दूध-दही, शर्करा, घी व मधु से स्नान कराकर देवी को कुछ प्रसाद अर्पित की जाती हैं। इसके बाद आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट करते हैं और इस प्रकार माता की पूजा सम्पन्न की जाती हैं। अपने हाथों में एक फूल लेकर इस मंत्र का जाप करते हुए प्रार्थना करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।*

*“दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू. देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा”*

*इसके माता ब्रह्मचारिणी को पंचामृत से स्नान कराकर फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर आदि अर्पित करें। अंत में क्षमा प्रार्थना जरूर करें।*
*👏श्री बालाजी सेवा समिति नोएडा(रजि.-1631):-(एक प्रयास अध्यात्म की अोर)🎊🎊🍁*
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Sunday 22 September 2019

🌷माता सीता का निंदक धोबी🌷

    जब भगवान श्रीराम अपने धाम को चले उस समय उनके साथ अयोध्या के सभी पशु- पक्षी, पेड़-पौधे मनुष्य भी उनके साथ चल पड़े. उनमें सीता जी की निंदा करने वाला धोबी भी था.
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भगवान ने उस धोबी का हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और उनको अपने साथ लिए चल रहे थे. जिस-जिस ने भगवान को जाते देखा वे सब भगवान के साथ चल पड़े. कहते है कि वहां के पर्वत भी उनके साथ चल पड़े.
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सभी पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, पर्वत और मनुष्यों ने जब साकेत धाम में प्रवेश करना चाहा तब साकेत का द्वार खुल गया पर जैसे ही उस निंदनीय धोबी ने प्रवेश करना चाहा तो द्वार बंद हो गया.
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साकेत द्वार ने भगवान से कहा- महाराज ! आप भले ही इसका हाथ पकड़ लें पर यह जगत जननी माता सीता जी की निंदा कर चुका है. इसका पाप इतना बड़ा है कि मैं इसे साकेत में प्रवेश की अनुमति नहीं दे सकता.
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जिस समय भगवान सब को साथ लिए साकेत की ओर चले जा रहे थे उसी समय सभी देवी-देवता भी आकाश मार्ग से देख रहे थे कि आखिर सीता माता की निंदा करने वाले पापी धोबी को भगवान कहां स्थान दिलाते हैं.
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भगवान ने द्वार बन्द होते ही इधर-उधर देखा तो ब्रह्मा जी ने सोचा कि कहीं भगवान इस पापी को मेरे ब्रह्मलोक में ही न भेज दें. ब्रह्मा जी चिंतित हो गए. हाथ हिला-हिलाकर कहने लगे- प्रभु ! इस पापी के लिए मेरे ब्रह्मलोक में कोई स्थान नही है.
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इन्द्र ने सोचा कि प्रभु कहीं इसे मेरे इन्द्र लोक में न भेज दे. इससे इंद्र भी घबराए. उन्होंने भी प्रभु को विनती लगाई- प्रभु ! इस पापी के लिए इन्द्र लोक में भी कोई जगह नही है. आप ऐसा आदेश करके मुझे धर्मसंकट में न डालिएगा.
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अब ध्रुव जी को चिंता हुई कि कहीं आखिर में प्रभु इस पापी को ध्रुव लोक में ही स्थान न दे दें. इसका पाप इतना बड़ा है की इसके पाप के बोझ से ध्रुव लोक गिरकर नीचे आ जायेगा. यह लोक भी प्रभु ने ही दिया है इसलिए इसकी रक्षा वही करेंगे.
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ऐसा विचार कर ध्रुव जी भी कहने लगे- प्रभु आपने ही ध्रुव लोक प्रदान किया है. आप इस पापी को मेरे पास भी मत भेजिएगा. अन्यथा आपके द्वारा प्रदत्त मेरा ध्रुव लोक इस पापी के कारण संकट में आ जाएगा. रक्षा करिएगा प्रभु.
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दस लोकों के दसों दिकपालों को भी चिंता थी. जिनका अपना अलग से लोक बना था उन सभी देवताओं ने विनय पूर्वक प्रभु से गुहार लगाई और उस निकृष्ट पापी धोबी को अपने लोक मे रखने से क्षमा याचना के साथ मना कर दिया.
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भगवान खड़े-खड़े मुस्कुराते हुए सबका चेहरा देख रहे हैं पर कुछ बोलते नहीं. देवताओं की भीड़ में यमराज भी खड़े थे. यमराज ने सोचा कि ये किसी लोक में जाने का अधिकारी नहीं है.
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अब इस पापी को भगवान कहीं मेरे यहां न भेज दें. माता की निंदा करने वाले को किसी देवता ने स्थान नहीं दिया. यदि मेरे लोक में स्थान मिल गया तो देवताओं के बीच निंदा का कारण भी बन सकता हूं. इसे यम पुरी में नहीं रखा जा सकता.
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यमराज जी घबराकर उतावली वाणी से बोले- महाराज ! स्वामी ! आपने जिसका हाथ थाम रखा है वह इतना बड़ा पापी है कि इसके लिए मेरी यम पुरी में भी कोई जगह नहीं है.
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अब धोबी को घबराहट होने लगी कि मेरी दुर्बुद्धी ने इतना निंदनीय कर्म करवा दिया कि यमराज भी मुझे नहीं रख सकते. अब तो मेरा जाने क्या हो.
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भगवान ने धोबी की घबराहट देखकर संकेत से कहा- तुम घबराओ मत ! मैं अभी तुम्हारे लिए एक नए साकेत का निर्माण करता हूं. तब भगवान ने उस धोबी के लिए एक अलग साकेत धाम बनाया.
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सिय निँदक अघ ओघ नसाए,🌷
लोक बिसोक बनाइ बसाए।🌷
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ऐसा अनुभव होता है कि आज भी वह धोबी अकेला ही उस साकेत में पड़ा है जहां कोई देवी-देवता का वास नहीं है. न हीं तो वह किसी को देख सकता है और न ही उसको कोई देख सकता है. इस तरह धोबी न घर का रहा न घाट का ।।
(रामायण की क्षेपक कथा)
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🌹🌹🌹जय जय श्री राम जी🌹🌹🌹
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Thursday 5 September 2019

*🍁🎊🎉शिव जी ने मगरमच्छ बनकर ली पार्वती की परीक्षा💥🎉🎊🍁*

      👉🏻  माता पार्वती शिव जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तप कर रही थीं। उनके तप को देखकर देवताओं ने शिव जी से देवी की मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की।

शिव जी ने पार्वती जी की परीक्षा लेने सप्तर्षियों को भेजा।

सप्तर्षियों ने शिव जी के सैकड़ों अवगुण गिनाए पर पार्वती जी को महादेव के अलावा किसी और से विवाह मंजूर न था।

विवाह से पहले सभी वर अपनी भावी पत्नी को लेकर आश्वस्त होना चाहते हैं। इसलिए शिव जी ने स्वयं भी पार्वती की परीक्षा लेने की ठानी।

भगवान शंकर प्रकट हुए और पार्वती को वरदान देकर अंतर्ध्यान हुए। इतने में जहां वह तप कर रही थीं, वही पास में तालाब में मगरमच्छ ने एक लड़के को पकड़ लिया।

लड़का जान बचाने के लिए चिल्लाने लगा। पार्वती जी से उस बच्चे की चीख सुनी न गई। द्रवित हृदय होकर वह तालाब पर पहुंचीं। देखती हैं कि मगरमच्छलड़के को तालाब के अंदर खींचकर ले जा रहा है।

लड़के ने देवी को देखकर कहा- मेरी न तो मां है न बाप, न कोई मित्र... माता आप मेरी रक्षा करें.. .

पार्वती जी ने कहा- हे ग्राह ! इस लडके को छोड़ दो। मगरमच्छ बोला- दिन के छठे पहर में जो मुझे मिलता है, उसे अपना आहार समझ कर स्वीकार करना, मेरा नियम है।

ब्रह्मदेव ने दिन के छठे पहर इस लड़के को भेजा है। मैं इसे क्यों छोडूं ?

पार्वती जी ने विनती की- तुम इसे छोड़ दो। बदले में तुम्हें जो चाहिए वह मुझसे कहो।

मगरमच्छ बोला- एक ही शर्त पर मैं इसे छोड़ सकता हूं। आपने तप करके महादेव से जो वरदान लिया, यदि उस तप का फल मुझे दे दोगी तो मैं इसे छोड़ दूंगा।

पार्वती जी तैयार हो गईं। उन्होंने कहा- मैं अपने तप का फल तुम्हें देने को तैयार हूं लेकिन तुम इस बालक को छोड़ दो।

मगरमच्छ ने समझाया- सोच लो देवी, जोश में आकर संकल्प मत करो। हजारों वर्षों तक जैसा तप किया है वह देवताओं के लिए भी संभव नहीं।

उसका सारा फल इस बालक के प्राणों के बदले चला जाएगा।

पार्वती जी ने कहा- मेरा निश्चय पक्का है। मैं तुम्हें अपने तप का फल देती हूं। तुम इसका जीवन दे दो।

मगरमच्छ ने पार्वती जी से तपदान करने का संकल्प करवाया। तप का दान होते ही मगरमच्छ का देह तेज से चमकने लगा।

मगर बोला- हे पार्वती, देखो तप के प्रभाव से मैं तेजस्वी बन गया हूं। तुमने जीवन भर की पूंजी एक बच्चे के लिए व्यर्थ कर दी। चाहो तो अपनी भूल सुधारने का एक मौका और दे सकता हूं।

पार्वती जी ने कहा- हे ग्राह ! तप तो मैं पुन: कर सकती हूं, किंतु यदि तुम इस लड़के को निगल जाते तो क्या इसका जीवन वापस मिल जाता ?

देखते ही देखते वह लड़का अदृश्य हो गया। मगरमच्छ लुप्त हो गया।

पार्वती जी ने विचार किया- मैंने तप तो दान कर दिया है। अब पुन: तप आरंभ करती हूं। पार्वती ने फिर से तप करने का संकल्प लिया।

भगवान सदाशिव फिर से प्रकट होकर बोले- पार्वती, भला अब क्यों तप कर रही हो?

पार्वती जी ने कहा- प्रभु ! मैंने अपने तप का फल दान कर दिया है। आपको पतिरूप में पाने के संकल्प के लिए मैं फिर से वैसा ही घोर तप कर आपको प्रसन्न करुंगी।

महादेव बोले- मगरमच्छ और लड़के दोनों रूपों में मैं ही था। तुम्हारा चित्त प्राणिमात्र में अपने सुख-दुख का अनुभव करता है या नहीं, इसकी परीक्षा लेने को मैंने यह लीला रची। अनेक रूपों में दिखने वाला मैं एक ही एक हूं। मैं अनेक शरीरों में, शरीरों से अलग निर्विकार हूं। तुमने अपना तप मुझे ही दिया है इसलिए अब और तप करने की जरूरत नहीं....

देवी ने महादेव को प्रणाम कर प्रसन्न मन से विदा किया।
🙏🙏 *श्री बाला जी सेवा समिति नोएडा (रजि.-1631) एक प्रयास अध्यात्मिक उन्नति का*🙏🙏

🎋🌿🌾 *देवी माँ का नौवां स्वरूप- सिद्धिदात्री* 🌾🌿🎋

 🌿🌿🌾 *नौवां नवरात्रा* 🌾🌿🌿 🎊🎊🎉☀ *आओ  माता* ☀🎉🎊🎊 🎋🌿🌾 *देवी माँ का नौवां स्वरूप- सिद्धिदात्री* 🌾🌿🎋         👉 *शारदीय नवरात्र...