Tuesday 25 June 2019

"क्यों बीमार पड़ते हैं श्री जगन्नाथ भगवान् ?"

.          "क्यों बीमार पड़ते हैं श्री जगन्नाथ भगवान् ?"
                          (भक्त माधव दास जी)

          उड़ीसा प्रान्त में जगन्नाथ पूरी में एक भक्त रहते थे, श्री माधव दास जी  अकेले रहते थे, कोई संसार से इनका लेना देना नही। अकेले बैठे बैठे भजन किया करते थे, नित्य प्रति श्री जगन्नाथ प्रभु का दर्शन करते थे, और उन्हीं को अपना सखा मानते थे, प्रभु के साथ खेलते थे। प्रभु इनके साथ अनेक लीलाएँ किया करते थे। प्रभु इनको चोरी करना भी सिखाते थे भक्त माधव दास जी अपनी मस्ती में मग्न रहते थे।
         एक बार माधव दास जी को अतिसार (उलटी-दस्त) का रोग हो गया। वह इतने दुर्बल हो गए कि उठ-बैठ नहीं सकते थे, पर जब तक इनसे बना ये अपना कार्य स्वयं करते थे और सेवा किसी से लेते भी नही थे। कोई कहे महाराजजी हम कर दें आपकी सेवा तो कहते नही मेरे तो एक जगन्नाथ ही हैं वही मेरी रक्षा करेंगे। ऐसी दशा में जब उनका रोग बढ़ गया वो उठने-बैठने में भी असमर्थ हो गये, तब श्री जगन्नाथजी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुँचे और माधवदासजी को कहा की हम आपकी सेवा कर दें।
         क्योंकि उनका इतना रोग बढ़ गया था कि उन्हें पता भी नही चलता था, कब वे मल मूत्र त्याग देते थे। वस्त्र गंदे हो जाते थे। उन वस्त्रों को जगन्नाथ भगवान अपने हाथों से साफ करते थे, उनके पूरे शरीर को साफ करते थे, उनको स्वच्छ करते थे। कोई अपना भी इतनी सेवा नही कर सकता, जितनी जगन्नाथ भगवान ने भक्त माधव दास जी की करते थे।
         जब माधवदासजी को होश आया, तब उन्होंने तुरन्त पहचान लिया की यह तो मेरे प्रभु ही हैं। एक दिन श्री माधवदासजी ने पूछ लिया प्रभु से - “प्रभु ! आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो। आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे, रोग दूर कर देते तो ये सब करना नही पड़ता।” ठाकुरजी कहते हैं - "देखो माधव ! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता, इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की। जो प्रारब्ध होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है। अगर उसको  इस जन्म में नहीं काटोगे तो उसको भोगने के लिए फिर तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ेगा और मैं नहीं चाहता की मेरे भक्त को जरा से प्रारब्ध के कारण अगला जन्म फिर लेना पड़े। इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की लेकिन अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नहीं टाल सकता। (भक्तों के सहायक बन उनको प्रारब्ध के दुखों से, कष्टों से सहज ही पार कर देते हैं प्रभु) अब तुम्हारे प्रारब्ध में ये 15 दिन का रोग और बचा है, इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे।" 15 दिन का वो रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधवदासजी से ले लिया।
         वो तो हो गयी तब की बात पर भक्त वत्सलता देखो आज भी वर्ष में एक बार जगन्नाथ भगवान को स्नान कराया जाता है (जिसे स्नान यात्रा कहते हैं)। स्नान यात्रा करने के बाद हर साल 15 दिन के लिए जगन्नाथ भगवान आज भी बीमार पड़ते हैं। 15 दिन के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है। कभी भी जगन्नाथ भगवान की रसोई बन्द नही होती पर इन 15 दिन के लिए उनकी रसोई बन्द कर दी जाती है। भगवान को 56 भोग नही खिलाया जाता, (बीमार हो तो परहेज तो रखना पड़ेगा)
         15 दिन जगन्नाथ भगवान को काढ़ो का भोग लगता है। इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है। जगन्नाथ धाम मन्दिर में तो भगवान की बीमारी की जांच करने के लिए हर दिन वैद्य भी आते हैं। काढ़े के अलावा फलों का रस भी दिया जाता है। वहीं रोज शीतल लेप भी लगया जाता है। बीमार के दौरान उन्हें फलों का रस, छेना का भोग लगाया जाता है और रात में सोने से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता है।
         भगवान जगन्नाथ बीमार हो गए है और अब 15 दिनों तक आराम करेंगे। आराम के लिए 15 दिन तक मंदिरों पट भी बन्द कर दिए जाते है और उनकी सेवा की जाती है। ताकि वे जल्दी ठीक हो जाएँ। जिस दिन वे पूरी तरह से ठीक होते हैं उस दिन जगन्नाथ यात्रा निकलती है, जिसके दर्शन हेतु असंख्य भक्त उमड़ते हैं।
        खुद पे तकलीफ ले कर अपने भक्तों का जीवन सुखमयी बनाये, ऐसे भक्तवत्सलता है प्रभु जगन्नाथ जी की।

                      "जय जय श्रीजगन्नाथ जी"
✨ श्री बालाजी सेवा समिति नोएडा (एक प्रयास आनंद की अोर)✨
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Monday 3 June 2019

💐 जय महाबली हनुमान💐

हनुमान जी को महावीर और महाबली भी कहते हैं यानि वीरों का भी वीर.हनुमान जी ने भगवान श्रीराम के कार्य संवारने के साथ साथ अनेक बार अपनी वीरता सिद्ध की.
1.आकाश में उडकर सूर्य को निगल लेना-
जन्म के पश्‍चात ही उदित होते सूर्य को फल समझकर हनुमानजी ने उन्हें मुख में रख लिया था.
2.मातृशक्ति की रक्षा करना-राम-लक्ष्मण की सुग्रीव से भेंट कराने के लिए हनुमानजी प्रभु श्री राम और लक्ष्मन जी दोनों को अपने कंधे पर बिठाकर पंपा सरोवर के परिसर से ऋष्यमुख पर्वत तक वायु वेग से उडते हुए गये.सुग्रीव की पत्नी रूमा जब बाली के नियंत्रण में थी.उस समय वह जब भी हनुमानजी का स्मरण करती, हनुमानजी प्रकट होकर उसकी शीलरक्षा करते थे.
3.सीताजी की खोज-हनुमानजी ने समुद्र को लांघकर लंका में प्रवेश कर माँ सीता जी को खोज कर उनतक श्रीरामजी का संदेश पहुंचाया
4.इंद्रजीत ने जब राम-लक्ष्मण पर नागपाश डालकर उनको विष से मारने का प्रयास किया. तब हनुमानजी ने तत्परता से विष्णुलोक पहुंचे और गरुड जी से सहायता लेकर राम-लक्ष्मण को नागपाश से छुडाया.लक्ष्मणजी जब युद्ध में घायल हो गए थे तब उनकी मृत्यु न हो इसलिए हनुमानजी उत्तर दिशा में उडान भरकर वहां से संजीवनी वूटी से युक्त पूरा द्रोणागिरी पर्वत ही उठा लाए.
5.अहिरावण तथा महिरावण जब अपनी मायावी शक्तियों द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण को पाताल ले गए तब हनुमानजी पाताल गए तथा अहिरावण तथा महिरावण से युद्ध कर उनका संहार किया और श्रीराम-लक्ष्मण को सुरक्षित पृथ्वी पर ले आए.
6.हनुमानजी ने श्रीराम को अनेक अमूल्य सुझाव दिए जैसे विभीषण चाहे शत्रु का भाई हो.तब भी उसे मित्र के रूप में स्वीकार करें तथा सीताजी अग्नि से भी पवित्र है.इसलिए उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार करें.
7.श्रीरामजी के कहने पर आज्ञापालन के रूप में श्रीरामजी की अवतार-समाप्ति के पश्‍चात हनुमानजी ने लव-कुश को रामराज्य चलाने में सहायता की.
8.भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से हनुमानजी ने महाभारत युद्ध के समय अर्जुन के दैवी रथ पर आरूढ होकर धर्म की रक्षा की.श्रीकृष्णजी की आज्ञापालन के रूप में हनुमानजी ने सेवाभाव से भीम,अर्जुन,बलराम, गरुड तथा सुदर्शनचक्र के गर्वहरण का महान कार्य किया था.
9.हनुमानजी ने सेतु निर्माण के समय शिलाओं पर श्रीरामजी का नाम अंकित कर नल-नील की सहायता की.
10.हनुमानजी की पूंछ को आग लगाये जाने पर अग्नि की ज्वालाएं उनके शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुंचा सकी थीं इसके विपरीत हनुमानजी ने लंकादहन किया.
11.सप्तचिरंजीव के रूप में हनुमानजी रक्षा तथा मार्गदर्शन का कार्य करते हैं तथा कलियुग में भी जहां-जहां  भगवान श्रीराम का गुणगान कथा कीर्तन श्री रामायण पाठ श्रीमद्भागवत होता है वहां हनुमान जी सूक्ष्म रूप में उपस्थित रहकर रामभक्तों को आशीर्वाद देकर अभय प्रदान करते हैं.
12.हनुमानजी की श्रीरामजी के प्रति असीम दास्यभक्ति तथा शौर्य के कारण उनके दास हनुमान तथा वीर हनुमान ये 2 रूप विख्यात हैं आवश्यकता के अनुरूप हनुमानजी इन रूपों को धारण कर उचित कार्य करते हैं.साधना करनेवाले किसी भी जीव को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हनुमानजी के सूक्ष्म-रूप के कारण हमारे अंतःकरण में बसे अहंकाररूपी रावण की लंका का दहन करने पर हमारे हृदय में रामराज्य आरंभ होता है.
💐 जय महाबली हनुमान💐
✨🎆🍑🌾  श्री बालाजी सेवा समिति ✨🎆🍑🌾

🎋🌿🌾 *देवी माँ का नौवां स्वरूप- सिद्धिदात्री* 🌾🌿🎋

 🌿🌿🌾 *नौवां नवरात्रा* 🌾🌿🌿 🎊🎊🎉☀ *आओ  माता* ☀🎉🎊🎊 🎋🌿🌾 *देवी माँ का नौवां स्वरूप- सिद्धिदात्री* 🌾🌿🎋         👉 *शारदीय नवरात्र...